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न्यूज क्लिपिंग्स् | नरेगा विरोध का 34वां दिन: राजस्थान के नरेगा मज़दूरों ने साझा की परेशानियां
नरेगा विरोध का 34वां दिन: राजस्थान के नरेगा मज़दूरों ने साझा की परेशानियां

नरेगा विरोध का 34वां दिन: राजस्थान के नरेगा मज़दूरों ने साझा की परेशानियां

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published Published on Mar 29, 2023   modified Modified on Mar 29, 2023

29 मार्च, नई दिल्ली
जंतर-मंतर पर नरेगा मजदूरों के 100 दिवसीय धरने का आज 34वां दिन रहा। धरने में शामिल मज़दूरों ने आज भी
अपनी शिकायतों को व्यक्त किया और अपने अधिकारों की मांग को उठाया।
राजस्थान से आये नरेगा मज़दूरों ने कई पहलुओं के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से प्रतिक्रिया या शिकायत निवारण
की कमी को उजागर करते हुए धरने से पहले अपने संघर्षों को रखा। धरने पर बैठने के दौरान कुछ कार्यकर्ताओं ने
अपनी समस्या दूसरों से साझा की। अजमेर जिले (राजस्थान) की एक नरेगा कार्यकर्ता ने बताया कि वह नरेगा में मेट
के रूप में काम करती हैं MNNS ऐप आने के बाद उनको अपनी रोज़ी रोटी बचाने के लिए महंगा स्मार्ट फ़ोन खरीदना
पड़ा।
हालाँकि, खराब नेटवर्क के कारण वह ऐप पर अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कर पाती हैं। इसलिए तस्वीरें अपलोड करने
के लिए पर्याप्त नेटवर्क की तलाश में उन्हें हर रोज पहाड़ियों पर लगभग दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। जब भी
वह तस्वीरें अपलोड करती है, वह इसकी शिकायत अवर मंडल लिपिक से करने की कोशिश करती है, लेकिन वह उन्हें
घर जाने के लिए कहता है। इसका मतलब यह है कि वह और उनके जैसे कई अन्य मज़दूर उपस्थित दर्ज न होने के
कारण अपने काम की पूरी मज़दूरी पाने ने असमर्थ हैं।
नरेगा कार्यकर्ता ने यह भी बताया कि कुछ मज़दूरों ने 13-14 दिनों तक काम किया, लेकिन उन्हें केवल 5-6 दिनों की
मज़दूरी का भुगतान मिलता है। यह बेहद दुखद है मुख्य रूप से उन महिला मज़दूरों के लिए जो लंबी दूरी तय कर के
काम करने जाती हैं। एक अन्य नरेगा मज़दूर ने बताया कि उन्हें बीते 6 महीने से मज़दूरी का भुगतान नहीं किया गया है।
इसके अलावा MNNS ऐप आने के बाद उनको काम मिलने भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
राजस्थान के सिरोही जिले के श्रमिकों ने भी अपनी कठिनाइयों के बारे में बताया। आदिवासी क्षेत्रों की एक कार्यकर्ता
ने कहा कि उन्होंने अपना जीवन नरेगा में काम करते हुए बिताया है। उन्होंने बताया कि ऑनलाइन-आधारित उपस्थिति
के कारण कई नरगा मज़दूरों को उनकी मज़दूरी भी नहीं मिलती है। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने 12 दिन नरेगा
योजना के तहत काम किया था लेकिन उनको मात्र 3 दिन की मज़दूरी का भुगतान किया गया है। यही कारण है जो वह
जंतर मंतर पर धरने पर बैठे है। उनकी मांग है कि ऑनलाइन उपस्थिति बंद कर मैनुअल मस्टर रोल वापस लाया जाना
चाहिए।
राजस्थान की टुकड़ी में एक महिला मज़दूर के पति ने बताया कि उनकी पत्नी को नरेगा में अपनी उपस्थित दर्ज करवाने
में काफी दिक्कते आती हैं। दरअसल वह पहाड़ियों से घिरे एक आदिवासी इलाके में रहते है। जहां नेटवर्क ठीक से नहीं
आता है। उन्होंने यह भी बताया कि वे ऐसे कई अन्य नरेगा मज़दूरों को जानते हैं जिन्हें उनके काम करने के एक-तिहाई दिनों का भुगतान नहीं किया गया था। उनका कहना है कि MNNS एप आने से पहले ऐसी
स्थिति नहीं थी। एबीपीएस के बारे में उनका कहना है कि जिनके बैंक खाते आधार से जुड़े नहीं थे या उनके जॉब कार्ड
बैंक खातों से जुड़े नहीं थे। ऐसे मज़दूरों को मामूली वर्तनी की गलतियों के कारण उनके वेतन से भी वंचित कर दिया
गया। अंत में उनका कहना है कि नरेगा मजदूरों के प्रति इस तरह का नौकरशाही रवैया सरकार की मज़दूर विरोधी
मंशा को दर्शाता है।

 

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